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“अंडररेटेड लीजेंड आॅफ इंडिया” : खेल दिवस विशेष

ख़ुराफ़ाती बालक
ख़ुराफ़ाती बालक
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कुछ दिनों पहले टीवी पर एक मजेदार विज्ञापन आता था ,जिसमे एक हॉकी का खिलाडी इस तरह से हॉकी खेल रहा होता है, कि बॉल को उसके स्टिक से कोई अलग ही नहीं कर पाता मानों उस बॉल को हॉकीस्टिक से चिपका दिया गया हो, और लास्ट में वो खिलाड़ी गोल दाग देता है,
गोल दागने के बाद मारे ख़ुशी के वह स्टिक को ऊपर उठाता है, तो सच में वह बॉल
उस स्टिक से चिपका होता है,
कमेंटेटर जो कि उस खिलाडी का बड़ा बखान कर रहा होता है, उसे अचानक खांसी आने लगाती है,
और खिलाडी भी थोडा सकपका जाता है ।

यह विज्ञापन देखकर मेरे मन में एक विचार आता है,
अगर वास्तव में ऐसा होता तो क्या होता ?
फिर जवाब भी खुद ही मिलता है,
शायद उस खिलाडी की एक तस्वीर जिसमे वह हॉकीस्टिक में बॉल को चिपकाये हुए खड़ा है
सोशल मीडिया पर दो तीन दिन खूब ट्रोल होती,
एक दो दिन टेलीविजन पर जम कर डिबेट होता,
वहां पर नेता लोग एक दूसरे पर ऊँगली उठाते खिलाडियों की तैयारियों पर किये गए खर्चे की ।

इसी बीच में शायद फलाने जी का ट्वीट भी आ जाता कि इसमें धमाके जी का हाथ है ।
सबके जिम्मेदार वही हैं ।

कुछ बुद्धिजीवी कहते कि
कश्मीर को पाकिस्तान को सौंप
दीजिये नहीं तो ऐसे ही कश्मीरी
सेबों में मिलावट होती रहेगी और खिलाडी उसी सेब को खाकर तैयारी करेंगे और जीतने की आशा न होने पर इस तरह की घिनोनी हरकतें करेंगे ,
और अगर आप कश्मीर को पाकिस्तान को सौपेंगे तो वह सौ परसेंट शुद्ध सेब हिंदुस्तान को सप्लाई करेगा ।

इस तरह कुलमिला के हंगामा होता और बिहार के आर्ट साइंस टॉपरों की तरह इन खिलाडी भैया का भी जिंदगी भर के लिए नाम बदनाम ।

यह सब तो थे मेरे फ़िज़ूल के विचार,

दिमाग भी न ऐसे ऐसे चीज़ों का विश्लेषण
करता है कि जो एक दम से फालतू हों मेरे काम न आने वाली,काश दिमाग ने अब तक के एग्जाम के टाइम पर प्रश्नों को देखकर इतनें विचार किये होते तो मै भी टाॅपर न सही पर 80 परसेंट तक तो पहुच ही गया होता ।

खेर ! कोई बात नहीं ।

इन फिजूल की बातों को छोड़ते हैं और आतें हैं काम की बात पर।

हम आपको बता दें कि फेविस्टिक के विज्ञापन जैसा ही वाकया हॉलैंड की धरती पर एक बार हुआ था फर्क बस यही था की लास्ट में खिलाडी ने जब अपनी स्टिक ख़ुशी के मारे उठाई थी तो स्टिक के साथ बॉल चिपका हुआ नहीं था ।

उस खिलाड़ी ने खेल कुछ ऐसा खेल था की विरोधी टीम की तो बात ही छोड़ो अपनी ही टीम वालों को शक था की बॉल स्टिक से चिपकी हुई है ।

और अंत में जब विरोधी टीम हार गयी तो उसने उस खिलाडी के स्टिक को चेक कराया की कहीं स्टिक में कुछ चिपकने वाला पदार्थ तो नहीं लगा हुआ,
पर चेकिंग के बात पता चला कि स्टिक में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है ।
विरोधी टीम को फिर भी यकीन नहीं हुआ और उन्होंने उस स्टिक को तुड़वा दिया यह देखने ले लिए कि स्टिक के अंदर कोई मैग्नेटिक वस्तु तो नहीं जो बॉल को चिपक लेती हो पर स्टिक के अंदर कुछ न मिला । स्टिक के अंदर कुछ न पाने पर पुरे दुनिया ने उसे जादूगर कहा ।

“हॉकी का जादूगर” ।

जी हाँ वही हिटलर जैसों को ठुकराने वाले ,
हिंदुस्तान को ओलंपिक में गोल्ड मैडल दिलाने वाले भारत माँ के वीर सपूत और इलाहबाद के दद्दा “मेजर ध्याचन्द” ।

एक ऐसी महान आत्मा जिसे अंग्रेजी में कहा जाये

तो “LEGEND ऑफ़ HOCKEY”

जिसने खेल सिर्फ राष्ट्र के लिए खेला ।

जिसने हिटलर जैसों के बुलावे को बेझिझक ठुकरा दिया ।

मगर अफसोस,
उसे शायद हम लोगों ने ही गुमनाम कर दिया ।
मेजर

मेजर ध्यानचंद को भारतरत्न की उपाधि मिले न मिले पर सही मायने में भारत के रत्न तो यही हैं ,
इस बात से शायद ही कोई इनकार करे ।

भारत माँ के इस महान सपूत को कोटि कोटि नमन और श्रद्धांजलि ।

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